प्रश्न-पत्र में संकलित पाठों में से चार कवियों के जीवन परिचय, कृतियाँ तथा भाषा-शैली से सम्बन्धित प्रश्न पूछे जाते हैं। जिनमें से एक का उत्तर देना होता है। इस प्रश्न के लिए 3+2=5 अंक निर्धारित हैं।
जीवन परिचय
आधुनिक युग के प्रवर्तक भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का जन्म 1850 ई. में काशी के एक सम्पन्न परिवार में हुआ था। काशी के प्रसिद्ध सेठ अमीचन्द के वंशज भारतेन्दु के पिता का नाम बाबू गोपालचन्द्र था, जो ‘गिरिधरदास’ के नाम से कविता लिखते थे। घरेलू परिस्थितियों एवं समस्याओं के कारण भारतेन्दु की शिक्षा व्यवस्थित रूप से नहीं चल पाई। इन्होंने घर पर ही स्वाध्याय द्वारा हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी, बांग्ला, मराठी आदि भाषाओं की शिक्षा ग्रहण की। इन्होंने कविताएँ लिखने के साथ-साथ कवि-वचन सुधा (1884 बनारस) नामक पत्रिका का प्रकाशन भी आरम्भ किया। बाद में, हरिश्चन्द्र मैग्जीन (1883 बनारस) तथा ‘हरिश्चन्द्र चन्द्रिका’ का भी सफल सम्पादन किया। ये साहित्य के क्षेत्र में कवि, नाटककार, इतिहासकार, समालोचक, पत्र-सम्पादक आदि थे, तो समाज एवं राजनीति के क्षेत्र में एक राष्ट्रनेता एवं सच्चे पथ-प्रदर्शक थे। जब राजा शिवप्रसाद को अपनी चाटुकारिता के बदले विदेशी सरकार द्वारा सितारे-हिन्द की पदवी दी गई, तो देश के सुप्रसिद्ध विद्वज्जनों ने इन्हें 1880 ई. में ‘भारतेन्दु’ विशेषण से विभूषित किया। क्षय रोग से ग्रस्त होने के कारण अल्पायु में ही 1885 ई. में भारत को यह इन्दु (चन्द्रमा) अस्त हो गया।
साहित्यिक गतिविधियाँ:- भारतेन्दु जी को हिन्दी गद्य का जनक माना जाता है। इन्होंने साहित्य को सर्वांगपूर्ण बनाया। काव्य के क्षेत्र में इनकी कृतियों को इनके युग का दर्पण माना जाता है।
इनकी निम्नलिखित रचनाएँ उल्लेखनीय हैं।
काव्य कृतियाँ:-
प्रेम मापुरी, प्रेम तरंग, प्रेम सरोवर, प्रेम मालिका, प्रेम प्रलाप, तन्मय लीला, कृष्ण चरित, दान-लीला, भारत वीरत्व, विजयिनी, विजय पताका आदि रचनाओं के अतिरिक्त उर्दू का स्यापा, नए जमाने की मुकरी आदि भी उल्लेखनीय रचनाएँ हैं।
अन्य कृतियाँ:-
नाटक:- ‘वैदिकी हिंसा, हिंसा न भवति’, ‘सत्य हरिश्चन्द्र’, ‘श्रीचन्द्रावली’, ‘भारत दुर्दशा’, ‘नीलदेवी’ और ‘अँधेर नगरी’
उपन्यास :- ‘पूर्ण प्रकाश’ और ‘चन्द्रप्रभा’।
इतिहास और पुरातत्त्व सम्बन्धी कृतियाँ:- ‘कश्मीर कुसुम’, ‘महाराष्ट्र देश का इतिहास’, ‘रामायण का समय’, ‘अग्रवालों की उत्पत्ति’, ‘बूंदी का राजवंश’ और ‘चरितावली’।
देश-प्रेम सम्बन्धी रचनाएँ:- ‘भारतवीरत्व, ‘विजय-वल्लरी’, ‘विजयिनी’ एवं ‘विजय-पताका’।
प्रेम-माधुरी ( पद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर)
प्रश्न-पत्र में पद्म भाग से दो पद्यांश दिए जाएँगे, जिनमें से एक पर आधारित 5 प्रश्नों (प्रत्येक 2 अंक) के उत्तर: देने होंगे।
प्रश्न 1. रोकहिं जो तौ अमंगल होय औ प्रेम नसै जो कहैं पिय जाइए।
जौ कहैं जाहु न तो प्रभुता जौ कछू न कहैं तो सनेह नसाइए।।
जो ‘हरिचन्द’ कहूँ तुमरे बिनु जीहैं न तो यह क्यों पतिआइए।
तासों पयान समै तुम्हरे हम का कहैं आपै हमें समुझाइए।।
01 प्रस्तुत पद्यांश के कवि व शीर्षक का नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर: प्रस्तुत पद्यांश आधुनिक युग के प्रवर्तक कवि व नाटककार भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा रचित कविता ‘प्रेम-माधुरी’ से उधृत है।
02 पद्यांश में नायिका की किस मनोदशा का वर्णन किया गया है?
उत्तर: पद्यांश में नायिका की असमंजस एवं दुविधापूर्ण मानसिक स्थिति का वर्णन किया गया है। नायिका का पति परदेश जा रहा है और वह इस असमंजस की स्थिति में है कि किस प्रकार विदेश जाते हुए अपने पति को अपने मनोभावों से अवगत कराए।
03 नायिका द्वारा जगत् की किस रीति का उल्लेख किया गया है?
उत्तर: नायिका जाते हुए किसी को पीछे से टोकने से सम्बन्धित जगत् की रीति का उल्लेख करती है। नायिका कहती है कि यदि वह अपने प्रियतम को पीछे से टोकती हैं, तो लोगों के अनुसार यात्रा को जाते समय किसी को टोकना अशुभ होता है। अतः वह किस प्रकार अपने प्रियतम को अपनी बात बताए।
04 जौ कहूँ जाहु न तो प्रभुता जौ कुछ न कहें तो सनेह नसाइए ।’ पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: प्रस्तुत पंक्ति में नायिका की दुविधापूर्ण स्थिति का वर्णन करते हुए कवि कहता है कि वह सोचती है, यदि वह अपने प्रियतम से विदेश में जाने के लिए कहती है तो वह उन्हें आदेश देने के समान होगा और यदि वह उनसे कुछ नहीं कहती तो उसका प्रेम नष्ट होगा।
05 पद्यांश की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर: प्रस्तुत् पद्यांश में कवि ने नायिका की दुविधापूर्ण मानसिक स्थिति को व्यक्त करने के लिए ब्रज भाषा का प्रयोग किया है, जो अत्यन्त प्रभावशाली है। कवि ने मुक्तक शैली का प्रयोग करते हुए सम्पूर्ण कथा अभिव्यक्त की है।
प्रश्न 2. आजु लौं जौ न मिले तो कहा हम तो तुम्हरे सब भाँति कहावें।
मेरौ उराहनो है कछु नाहिं सबै फल आपने भाग को पावै।।
जो ‘हरिचन्द भई सो भई अब प्रान चले चहूँ तासों सुनावें।
प्यारे जू है जग की यह रीति बिदा के समै सब कण्ठ लगावें।।
01 प्रस्तुत पद्यांश में नायिका की किस दशा की अभिव्यक्ति हुई है?
उत्तर: नायिका नायक से अत्यधिक प्रेम करती है। वह उसे बिछुड़ने के कारण अत्यधिक दु:खी है तथा उससे मिलने के लिए लालायित है। नायिका की इसे विरह अवस्था की अभिव्यक्ति ही काव्यांश में हुई है।
02 नायिका अपनी विरह अवस्था के लिए किसे उत्तर:दायी मानती है?
उत्तर: नायिका का मानना है कि नायक से न मिल पाने अर्थात् उससे (नायक) विरह के लिए उसका भाग्य ही उत्तर:दायी है। वह कहती है कि सभी अपने भाग्य के अनुसार फल पाते हैं और उसके भाग्य में नायक से विरह लिखा है, इसलिए वह इस दशा से पीड़ित हैं।
03 प्रस्तुत पद्यांश में नायिका ने अपनी कौन-सी इच्छा प्रकट की है?
उत्तर: प्रस्तुत पद्यांश में नायिका-नायक के विरह में तड़प रही है। उसकी उत्कंठ इच्छा है कि नायक उससे मिलने के लिए आए। नायिका अपनी इच्छा प्रकट करते हुए कहती है कि उसके प्राण अब उसके तन से निकलने वाले हैं। अतः नायक को नायिका से मिलने के लिए आनी चाहिए और उसे गले लगाना चाहिए।
04 प्रस्तुत पद्यांश में नायिका ने जगत की किस रीति का उल्लेख किया हैं?
उत्तर: नायिका का मानना है कि जगत् की यह रीति (नियम) रही है कि जो व्यक्ति जा रहा होता है, उसे गले लगाकर अन्तिम विदाई दी जाती है। अतः नायक को आकर इस रीति का पालन करना चाहिए।
05 प्रस्तुत पद्यांश में प्रयुक्त रस को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने वियोग श्रृंगार रस का प्रयोग किया है। इस पद्यांश में कवि ने नायक से नायिका के न मिल पाने के कारण उसकी विरहावस्था का वर्णन किया है। अतः इसमें वियोग श्रृंगार रस हैं। अतः नायक को आकर इस . रीत का पालन करना चाहिए।
यमुना-छवि ( पद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर)
प्रश्न-पत्र में पद्म भाग से दो पद्यांश दिए जाएँगे, जिनमें से एक पर आधारित 5 प्रश्नों (प्रत्येक 2 अंक) के उत्तर: देने होंगे।
प्रश्न 1.तरनि-तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए।
झुके कुल सों जल परसन हित मनहुँ सुहाए।
किधौं मुकुर मैं लखत उझकि सबै निज-निज सोभा।
कै प्रनवत जल जानि परम पावन फल लोभा।।
मनु आतप वारन तीर कौं सिमिटि सबै छाये रहत।
कै हरि सेवा हित नै रहे निरखि नैन मन सुख लहत ।।
01 प्रस्तुत पद्यांश के शीर्षक व कवि का नाम बताइए।
उत्तर: प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक हिन्दी में संकलित भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा रचित कविता ‘यमुना छवि’ से उद्धृत है।
02 प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने किसका वर्णन किया हैं?
उत्तर: प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने यमुना नदी के किनारे छाए हुए तमाल के वृक्षों का वर्णन किया है। जिन्हें देखकर कवि के मस्तिष्क में भिन्न-भिन्न छायाचित्र निर्मित होते हैं।
03 यमुना नदी के किनारे खड़े वृक्षों को देखकर कवि को क्या प्रतीत होता है?
उत्तर: नदी के किनारे खड़े वृक्षों को देखकर कवि को ऐसा प्रतीत होता है जैसे तेमाल के वृक्ष यमुना नदी को स्पर्श करना चाहते हों या फिर वे झुककर नदी के पानी में अपना प्रतिबिम्ब देखना चाहते हों। कभी-कभी कवि को ऐसा लगता है मानो वे नदी के तट को धूप से बचाने के लिए उसे छाया प्रदान कर रहे हों या वे तट पर, कृष्ण को नमन करने एवं उनकी सेवा करने के लिए झुके हुए हों
04 प्रस्तुत पद्यांश के अलंकार सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर: प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने अलंकारों का अत्यन्त सुन्दर प्रयोग किया है, जिसने काव्य की शोभा बढ़ा दी हैं। ‘तरनि तनूजा तट तमाल’, में ‘त’ वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार, ‘सब निज-निज सोभा’, में निज-निज की पुनरावृत्ति के कारण पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार व ‘मनु आतप वारन तीर कौं’ में उत्प्रेक्षा अलंकार हैं तथा सम्पूर्ण पद्यांश में मानवीकरण अलंकार विद्यमान हैं।
05 ‘तरनि-तनूजा’ व ‘तट’ शब्दों के दो-दो पर्यायवाची, बताइए।
उत्तर: तरनि-तनूजा :- यमुना, कालिन्दी / तट :- किनारा , तीर
प्रश्न 2.कबहुँ होत सत चन्द कबहुँ प्रगटत दुरि भाजत।
पवन गवन बस बिम्ब रूप जल में बहु साजते।
मनु ससि भरि अनुराग जमुन जल लोटत डोलै।
कै तरंग की डोर हिंडोरनि करत कलोलें।।
कै बालगुड़ी नभ में उड़ी सोहत इत उत धावती।
कै अवगाहत डोलत कोऊ ब्रजरमनी जल आवती।।
01 कवि को यमुना नदी के जल पर पड़े चन्द्रमा के प्रतिबिम्ब को देखकर क्या अनुभूति होती है?
उत्तर: कवि जब यमुना नदी के जल पर चन्द्रमा के प्रतिबिम्ब को देखता है तो कभी उसे लहरों पर सौ-सौ चन्द्रमा दिखाई देते हैं, कभी वह उसे दूर जाकर अदृश्य होता हुआ अनुभूत होता है। कभी वह उसे जल में झूला झूलते हुए प्रतीत होता है तो कभी उसे उसमें बच्चे द्वारा उड़ाई गई पतंग की अनुभूति होती है।
02 “के बालगुड़ी नभ में उड़ी सोहत इत उत धावती।” पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: कवि यमुना के जल पर चन्द्रमा के प्रतिबिम्ब को देखकर कल्पना करते हुए कहता है कि यमुना की लहरों पर चन्द्रमा का हिलता हुआ प्रतिबिम्ब ऐसा प्रतीत हो रहा है, मानो किसी बच्चे की पतंग आकाश में हवा के जोर से इधर-उधर हिल रही हो।
03 पद्यांश का केन्द्रीय भाव लिखिए।
उत्तर: पद्यांश में कवि भारतेन्दु ने यमुना के जल पर पड़ने वाले चन्द्रमा के प्रतिबिम्ब का वर्णन किया है। चन्द्रमा का यह रूप कवि को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है, जिसे देखकर कवि के मन में भिन्न-भिन्न प्रकार की कल्पनाएँ प्रकट हो रही हैं।
04 प्रस्तुत पद्यांश के अलंकार सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर: प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने ब्रजभाषा का प्रयोग करते हुए मुक्तक शैली में काव्य रचना की है। जल पर पड़ने वाली चन्द्रमा की छाया का वर्णन करते हुए पद्यांश में श्रृंगार रस की प्रधानता विद्यमान है। ‘मनु ससि भरि अनुराग’ में उत्प्रेक्षा अलंकार व ‘सोहत इत उत धावती’ में ‘त’ वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है।
05 ‘ससि’ व ‘नभ’ शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए।
उत्तर: ससि:- राकेश, चन्द्रमा / नभ :- आकाश, असमान
प्रश्न 3.मनु जुग पच्छ प्रतच्छ होत मिटि जात जमुन जल।
कै तारागन ठगन लुकत प्रगटत ससि अबिकल।
कै कालिन्दी नीर तरंग जितो उपजावत।
तितनो ही धरि रूप मिलन हित तासों धावत।
कै बहुत रजत चकई चलत के फुहार जल उच्छत।
कै निसिपति मल्ल अनेक बिधि उठि बैठत कसरत करत।
कुजत कहुँ कलहंस कहूँ मज्जत पारावत।
कहुँ कारण्डव उड़त कहूँ जल कुक्कुट धावत।
चक्रवाक कहुँ बसत कहूँ बक ध्यान लगावत।
सुक पिक जल कहुँ पियत कहूँ भ्रमरावलि गावत।
कहूँ तट पर नाचत मोर बहु रोर बिबिध पच्छी करत।
जल पान नहान करि सुख भरे तट सोभा सब जिय धरत।।
01 यमुना के जल में चन्द्रमा के प्रतिबिम्ब के दिखने व छिपने की तुलना कवि किससे करता है?
उत्तर: यमुना के जल में चन्द्रमा के प्रतिबिम्ब के दिखने व छिपने की तुलना कवि माह के दोनों पक्षों कृष्ण पक्ष व शुक्ल पक्ष से करता है। कवि कहता है कि जब चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब दिखाई देता है तो ऐसा लगता है, मानो शुक्ल पक्ष के कारण चारों ओर उजाला हो गया। हो और छिपने पर ऐसा लगता है, मानो कृष्ण पक्ष के कारण चारों ओर अँधेरा हो गया हो।
02 “कै कालिन्दी नीर तरंग जितो उपजावत तितनो ही धरि रूप मिलन हित तासों धावत।।” प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता हैं?
उत्तर: प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि प्रत्येक लहर के साथ चन्द्रमा की छवि दिखने के कारण कहता है कि उसे देखकर ऐसा प्रतीत होता है, मानो चाँद यमुना में उठने वाली प्रत्येक लहर से मिलने के लिए उतने ही रूप धारण करके उनके पीछे उत्साहित होकर दौड़ता रहता है।
03 प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने पक्षियों की शोभा का वर्णन किस प्रकार किया है?
उत्तर: प्रस्तुत पद्यांश में कवि पक्षियों की शोभा का वर्णन करते हुए कहता है कि यमुना के जल में विभिन्न पक्षी; राजहंस, कबूतर, जल मुर्गियों, चकवा-चकवी, बगुले, तोते, कोयल, मोर, भंवरे आदि इधर-उधर विहार कर रहे हैं, कोई स्नान कर रहा है, कोई गीत गा रहा है, और कोई नृत्य कर रहे हैं। इस प्रकार, कवि ने पक्षियों के विभिन्न क्रिया -कलापों का वर्णन किया है।
04 प्रस्तुत पद्यांश के अलंकार सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर: अलंकारों का प्रयोग उसके शिल्प एवं भाव पक्ष में सौन्दर्य उत्पन्न कर देता है। पाश में ‘जात, जमुन जल’ व ‘कुजत कई कलहंस कहूँ’ में क्रमशः ‘ज’ व ‘क’ वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार, ‘तितनो ही धरि रूप मिलन हित तास धावत’ में मानवीकरण, ‘मनु जुग पच्छ प्रतच्छ ’ में उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों का प्रयोग कवि ने किया है।
05 ‘कालिन्दी’ व ‘सुक’ शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए।
उत्तर: कालिन्दी:- यमुना, सूर्यसुता/ सुक :- तोता, सुगा
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